हमारे समाज में का स्थान भारतीय नारी
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BHOJPURI SPEECH |
सब से पहले हम इहाँ आइल सभे माई-बहिन आ भाई -बंधू के हाथ जोर के प्रणाम करतानी। आज बरी ख़ुशी के बात की हमके यहां कुछ बोले/गावे के मौका मिलल बा, सबसे पहले हम उनका धन्यवाद दे तानी जे हमके एतना बर जगह/मंच पर कुछ बोले के मौका देले बारन। रउवा लोगन से विनती करतानी की ई चाँद शब्द में हमनी कउनो गलती होइ त आपन नादान लइका समझ के छमा करेम।
पहले के समय में हेमर समाज मर्द से बसै औरत से मंत रहे। एगो अइसन समय रहल रहे की बाबू जी के नाम के बदले लोग माई के ही नाम से जानल जात रहे। धर्म द्रष्टा मनु नारी के पूजनीय आ श्रद्धामई मानले आ पर्दर्सित कइले बारन।
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'यत्रनार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः।
'माने जहाँ नारी पूजा होखेला , उहाँ देवता रमन करेलन, अर्थात निवास करेलन। लाहे-लाहे लामय के आर के चलते नारी दसा में ढेर अपूर्ण परिवर्तन भइलबा। उ आब नर में न रहके उनका समकक्ष श्रेणी में आ गइल। यदि पुरुष आपन घर परिवार के दायित्व सम्हाल लेलेबा त घर के सारा कार्य के बोझ नारी उठाबे का सुरु कर देले बा। इहे कारन बस नर आ नारी में काफी अंतर आ गइल बा। अइसन होब्ला के बाद भी प्राचीन कल के नारी हिन् भाबना के प्रत्याग कइके स्वतंत्र आ आस्वस्त भई के आपन व्यकित्व के सुन्दर और आकर्षक निर्माण कइलेवा। पंडित मिश्रा के मेहरारू द्वारा शंकराचार्य जी के परास्त होखे के साथ-साथ गार्गी, मैत्रयी, विधओमता आदि विदुषयो के नाम इहे श्रेणी में उल्लेखनीय बाटे।
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समय के बदलाब के साथ - साथ अब नारी-दशा में बहुते परिबर्तन हो गइल बा। यो ते नारी प्राचीन कल से अब तक भार्या के रूप में रहले बरी। एकरा खातिर उ गृहतः काज खातिर बिबस कइल गइल। जैसे - भोजन बनाबल , लइका बच्चा के देखभाल कइल, आपन पिया के सेवा कइल आदि। पिया के भूख के शांत करे खातिर विवश भइल अमानवता के शिकार बनके क्रय विक्रय के बस्तु भी बनल एंकर जीवन के विशेष अंग बन गइल रहे।
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क्षिक्षा के प्रचार प्रसार के फलस्वरप अब नारी के उ दुर्दशा नइखे। जे की अंधविस्वाशीयो, अज्ञान विचारधार फलस्वरूप रहे। नारी के नर के सामानांतर में लाबे के खातिर समाज के चिंतक लोग ई दिशा में सोचल सुरु कर देले बरन।
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